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नमस्कार दोस्तों,
आज हम बहुत ही अच्छे Topic को पढ़ने जा रहे है। जिससे छोटे एवं बड़े सभी लोगो को शिक्षा मिलेगी ।और हम उसे अपनी लाइफ में भी उनके जीवन से मिली शिक्षा को अपने जीवन में उतार सकते है।आज हम बात करने वाले है महाराणा प्रताप के बारे में ।जो एक वीर योद्धा थे ।जिनका वर्णन हमे इतिहास में देखने को मिलता है। उन्होंने बहुत से युद्ध लड़े और विजय भी प्राप्त की ।और सबसे अच्छा उनका साधन था वो था उनका घोड़ा जिसका नाम चेतक था ।जो बहुत ही तेज दौड़ता था और इस चेतक का वर्णन भी हमे इतिहास में देखने को मिलता है और महाराण प्रताप के जुडी कहनिया भी पढ़ने को हमे मिलती है । तो आज हम बात करेंगे महाराण प्रताप के जीवन के बारे में और उनसे जुड़ी कहानिया और उन्होंने कितने युद्ध किये उनका विवरण आज पढ़ेंगे। तो चलिए हम अपने Topic की बात करते है।
महाराणा प्रताप का जीवन परिचय (Maharana Pratap Biography in Hindi)
राजस्थान के कुम्भलगढ़ में राणा प्रताप का जन्म सिसोदिया राजवंश के महाराणा उदयसिंह एवं माता रानी जीवत कँवर के घर 9 मई, 1540 ई. को हुआ था। रानी जीवत कँवर का नाम कहीं-कहीं जैवन्ताबाई भी उल्लेखित किया गया है। वे पाली के सोनगरा राजपूत अखैराज की पुत्री थीं। प्रताप का बचपन का नाम 'कीका' था। मेवाड़ के राणा उदयसिंह द्वितीय की 33 संतानें थीं। उनमें प्रताप सिंह सबसे बड़े थे। स्वाभिमान तथा धार्मिक आचरण उनकी विशेषता थी। प्रताप बचपन से ही ढीठ तथा बहादुर थे। बड़ा होने पर वे एक महापराक्रमी पुरुष बनेंगे, यह सभी जानते थे। सर्वसाधारण शिक्षा लेने से खेलकूद एवं हथियार बनाने की कला सीखने में उनकी रुचि अधिक थी।
महाराणा प्रताप (maharana pratap itihas) मेवाड़ के महान हिंदू शासक थे। वे उदयपुर, मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश के राजा थे। वे अकेले ऐसे वीर थे, जिसने मुग़ल बादशाह अकबर की अधीनता किसी भी प्रकार स्वीकार नहीं की। वे हिन्दू कुल के गौरव को सुरक्षित रखने में सदा तल्लीन रहे। वीरता और आजादी के लिए प्यार तो राणा के खून में समाया था क्योंकि वह राणा सांगा के पोते और उदय सिंह के पुत्र थे। राजस्थान के मध्यकालीन इतिहास का सबसे चर्चित युद्ध हल्दीघाटी का युद्ध था जो मुगल बादशाह अकबर और महराणा प्रताप के बीच हुआ था। अकबर और महाराणा प्रताप (maharana pratap information) की शत्रुता जगजाहिर थी। लेकिन इसके बावजूद जब अकबर को महाराणा प्रताप की मृत्यु की खबर मिली तो वो बिल्कुल मौन हो गया था और उसकी आँखों मे आंसू आ गए थे। वह महाराणा प्रताप के गुणों की दिल से प्रशंसा करता था।
महाराणा प्रताप जयंती - Maharana Pratap Jayanti in Hindi
महाराणा प्रताप की जयंती विक्रमी संवत कैलेंडर के अनुसार प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है। प्रताप की जयंती के मौके पर देशभर में विभिन्न तरहे के आयोजन किये जाते हैं और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पण की जाती है। वहीं दूसरी तरफ अंग्रेजी वर्ष के अनुसार प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को हुआ था, इसीलिए उस दिन हिन्दू वर्ष के अनुसार ज्येष्ठ मास की तृतीया तिथि थी, इसीलिए बहुत सी जगह 9 मई को उनकी जयंती मनाई जाती है।
महाराणा प्रताप का इतिहास - Maharana Pratap History in Hindi
महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) को बचपन में ही ढाल तलवार चलाने का प्रशिक्षण दिया जाने लगा क्योंकि उनके पिता उन्हें अपनी तरह कुशल योद्धा बनाना चाहते थे। बालक प्रताप ने कम उम्र में ही अपने अदम्य साहस का परिचय दे दिया था। धीरे धीरे समय बीतता गया। दिन महीनों में और महीने सालों में परिवर्तित होते गये। इसी बीच प्रताप अस्त्र शस्त्र चलाने में निपुण हो गये। जब महाराणा प्रताप (महाराणा प्रताप की कहानी) को अपने पिता के सिंहासन पर बैठाया गया, तो उनके भाई जगमाल सिंह, ने बदला लेने के लिए मुगल सेना में शामिल हो कर बगावत कर दिया। मुगल राजा अकबर ने उसके द्वारा प्रदान की गई जानकारी और सहायता के कारण उसे जहज़पुर शहर की सल्तनत पुरस्कार के रूप में दिया।
जब राजपूतों ने चित्तौड़ को छोड़ दिया, तो मुगलों ने जगह पर नियंत्रण कर लिया, लेकिन मेवाड़ राज्य को वह अपने अधीन करने के उनके प्रयास असफल रहे। अकबर द्वारा कई दूत भेजे गए थे जिन्होंने एक गठबंधन पर प्रताप के साथ बातचीत करने की कोशिश की, लेकिन कुछ काम नहीं आया। 1573 में छह दूत संधि करने के लिए अकबर द्वारा भेजे गए लेकिन महाराणा प्रताप (maharana pratap ka itihas) द्वारा सब ठुकरा दिए गए। इन अभियानों में से अंतिम का नेतृत्व अकबर के बहनोई राजा मान सिंह ने किया था। जब शांति संधि पर हस्ताक्षर करने के प्रयास विफल हो गए, तो अकबर ने अपनी शक्तिशाली मुगल सेना के साथ लड़ने की कोशिश करने का मन बना लिया।
अकबर की सेना में 80000 सैनिक थे वही महाराणा प्रताप की राजपूत सेना संख्या में सिर्फ 20000 थी। यह युद्ध भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण युद्ध था। इतिहासकारों के अनुसार इस युद्ध मे न तो कोई विजय हुआ, न ही किसी की पराजय हुई। क्योंकि अकबर की सेना बहुत विशाल थी. उसके सामने 20000 की सेना थी, इसके बाबजूद वो महाराणा प्रताप को बंदी नही बना पाए थे। हार के बाबजूद भी महाराणा प्रताप ने अपना मनोबल कमजोर नहीं होने दिया और आखिरकार अपने खोये हुए क्षेत्रो को पुनः प्राप्त किया।
* महाराण प्रताप का सबसे महान युद्ध:-
हल्दीघाटी की लड़ाई | हल्दीघाटी का युद्ध | Haldighati War in Hindi
हल्दी घाटी का युद्ध सबसे बड़ा युद्ध माना जाता है, मुगलों और राजपूतों के बिच हुए युद्ध को आज भी चित्तोड़ भुला नहीं है| आज भी महाराणा प्रताप और अकबर की लड़ाई को भुला नहीं है.
आज भी चित्तोड़ की भूमि खून से लथपथ है| महाराणा प्रताप और अकबर के युद्ध में गयी जाने आज भी चित्तोड़ में अपनी यादें बसाये बैठी हैं.
सन् 1576 में राजा मान सिंह ने अकबर की तरफ से 5000 सैनिकों का नेतृत्व किया और हल्दीघाटी पर पहले से 3000 सैनिको को तैनात कर युद्ध की शुरुआत की| दूसरी तरफ अफ़गानी राजाओं ने महाराणा प्रताप का साथ दिया, जिनमे हाकिम खान सुर ने महाराणा प्रताप का मरते दम तक साथ दिया.
हल्दीघाटी का यह युद्ध कई दिनों तक चलता रहा, मेवाड़ की प्रजा को किले के भीतर पनाह दी गई, प्रजा एवम राजकीय लोग एक साथ मिलकर रहने लगे, लंबे युद्ध के कारण अन्न जल तक की कमी होती गयी, महिलाओं ने बच्चो और सैनिको के लिए खुद का अपना भोजन खाना कम कर दिया था.
सभी ने एकता के साथ प्रताप का इस युद्ध में साथ दिया| महारणा प्रताप के हौसलों को देख अकबर भी राजपूतों के हौसलों की प्रसंशा करने से खुद को रोक नहीं पाया लेकिन अन्न जल के आपूर्ति में महाराणा प्रताप यह युद्ध हार गये.
हल्दीघाटी की लड़ाई का आखिरी दिन – Maharana Pratap Biography in Hindi
युद्ध के अंतिम दिन जोहर प्रथा के चलते राजपूत महिलाओं ने एक जुट बना कर आग (अग्नि) में अपने आप को भस्म कर लिया और कई स्त्रियों ने लड़ाई के मैदान में लड़ कर वीरगति को प्राप्त किया.
इन सबके बाद अधिकारीयों ने राणा उदय सिंह, महारानी धीर बाई जी और जगमाल के साथ महाराणा प्रताप के पुत्र को पहले ही चित्तोड़ से दूर भेज दिया था.
युद्ध के एक दिन पूर्व उन्होंने प्रताप और अजब्दे को नीन्द की दवा देकर किले से गुप्त रूप से बाहर कर दिया था| इसके पीछे उनका सोचना था कि राजपुताना को वापस खड़ा करने के लिए भावी संरक्षण के लिए प्रताप का जिन्दा रहना बहुत जरुरी है।
हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की शौर्य से भरी कहानी
318 किलो वजन उठाकर सबसे तेज दौड़ने वाला और सबसे ऊँची छलांग लगाने वाला घोडा था महाराणा प्रताप का चेतक.
एक अरबी व्यापारी तीन घोड़े लेकर महाराणा प्रताप के समक्ष प्रस्तुत हुआ जिनके नाम चेतक, त्राटक और अटक थे. राणा ने उन तीनों घोड़ो का परिक्षण किया जिसमे अटक मारा गया त्राटक और चेतक बचे जिसमे चेतक ज्यादा बुद्धिमान और फुर्तीला था. प्रताप ने चेतक को रखा और त्राटक को अपने छोटे भाई शक्तिसिंह को दे दिया.
चेतक से जुड़ा एक प्रसंग
हल्दीघाटी के युद्ध में बिना किसी सैनिक के राणा अपने पराक्रमी चेतक पर सवार हो कर पहाड़ की ओर चल पडे. उनके पीछे दो मुग़ल सैनिक लगे हुए थे, परन्तु चेतक ने अपना पराक्रम दिखाते हुए रास्ते में एक पहाड़ी बहते हुए नाले को लाँघ कर प्रताप को बचाया जिसे मुग़ल सैनिक पार नहीं कर सके. चेतक द्वारा लगायी गयी यह छलांग इतिहास में अमर हो गयी इस छलांग को विश्व इतिहास में नायब माना जाता है.
चेतक ने नाला तो लाँघ लिया, पर अब उसकी गति धीरे-धीरे कम होती जा रही थी पीछे से मुग़लों के घोड़ों की टापें भी सुनाई पड़ रही थी उसी समय प्रताप को अपनी मातृभाषा में आवाज़ सुनाई पड़ी, ‘नीला घोड़ा रा असवार’ प्रताप ने पीछे पलटकर देखा तो उन्हें एक ही अश्वारोही दिखाई पड़ा और वह था, उनका सगा भाई शक्तिसिंह. प्रताप के साथ व्यक्तिगत मतभेद ने उसे देशद्रोही बनाकर अकबर का सेवक बना दिया था और युद्धस्थल पर वह मुग़ल पक्ष की तरफ़ से लड़ता था. जब उसने नीले घोड़े को बिना किसी सेवक के पहाड़ की तरफ़ जाते हुए देखा तो वह भी चुपचाप उसके पीछे चल पड़ा, परन्तु केवल दोनों मुग़लों को यमलोक पहुँचाने के लिए. जीवन में पहली बार दोनों भाई प्रेम के साथ गले मिले थे.
इस बीच चेतक इमली के एक पेड़ तले गिर पड़ा, यहीं से शक्तिसिंह ने प्रताप को अपने घोड़े पर भेजा और वे खुद चेतक के पास रुके. चेतक लंगड़ा (खोड़ा) हो गया, इसीलिए पेड़ का नाम भी खोड़ी इमली हो गया. कहते हैं, इमली के पेड़ का यह ठूंठ आज भी हल्दीघाटी में उपस्थित है.
महाराणा प्रताप परिचय
बिंदु(Points) | जानकारी (Information) |
नाम(Name) | महाराणा प्रताप |
पिता(Father) | उदय सिंह |
माता(Mother) | महारानी जयवंताबाई |
जन्म(Birth) | 9 मई 1540 |
जन्म स्थान(Birth Place) | कुंम्भलगढ़ दुर्ग राजस्थान |
मृत्यु (Death) | 19 जनवरी 1597 |
शासन काल (Reign) | 1568- 1597 |
पुत्र (Son) | अमर सिंह |
दादाजी (Grand Father) | राणा सांगा |
पत्नी (Wife) | महारानी अजबदे पुनवार |
धर्म (Religion) | हिन्दू |
महाराणा प्रताप की मृत्यु (Maharana Pratap Death)
अपनी मातृभूमि के लिए समर्पित जीवन जीने वाले महाराणा प्रताप का निधन 19 जनवरी 1597 को हुआ, जिसका कारण जंगल मे लगने वाली एक चोट थी. लेकिन अपने मातृभूमि के लिए त्याग और कठिनता का रास्ता चुनने वाले महाराणा प्रताप देशवासियों की यादों में हमेशा जीवित रहेंगे.
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