नमस्कार दोस्तों,
आज हम सीखेंगे अव्यय क्या होता है | इसके सभी भेदों को विस्तार पूर्वक समझेंगे | और उदाहरण भी पढ़ेंगे इन सभी के | अगर कुछ समझ न आये या कुछ पूछना हो |
तो बिना किसी संकोच के नीचे Comment करें | तो चलिए अव्यय सीखते है ।
अव्यय
अव्यय की परिभाषा
किसी भी भाषा के वे शब्द अव्यय कहलाते हैं जिनके रूप में लिंग, वचन, पुरुष, कारक, काल इत्यादि के कारण कोई विकार उत्पत्र नहीं होता।
अव्यय परिभाषा और भेद |
ऐसे शब्द हर स्थिति में अपने मूलरूप में बने रहते है। चूँकि अव्यय का रूपान्तर नहीं होता, इसलिए ऐसे शब्द अविकारी होते हैं। अव्यय का शाब्दिक अर्थ है- 'जो व्यय न हो।'
अव्यय का शाब्दिक अर्थ होता है – जो व्यय न हो। जिनके रूप में लिंग , वचन , पुरुष , कारक , काल आदि की वजह से कोई परिवर्तन नहीं होता उसे अव्यय शब्द कहते हैं। अव्यय शब्द हर स्थिति में अपने मूल रूप में रहते हैं। इन शब्दों को अविकारी शब्द भी कहा जाता है।
जैसे: जब , तब , अभी ,अगर , वह, वहाँ , यहाँ , इधर , उधर , किन्तु , परन्तु , बल्कि , इसलिए , अतएव , अवश्य , तेज , कल , धीरे , लेकिन , चूँकि , क्योंकि आदि।
अव्यय के भेद -
क्रिया-विशेषण अव्यय
संबंधबोधक अव्यय
समुच्चयबोधक अव्यय
विस्मयादिबोधक अव्यय
निपात अव्यय
* क्रिया-विशेषण अव्यय
क्रियाविशेषण की परिभाषा
जिन शब्दों से क्रिया, विशेषण या दूसरे क्रियाविशेषण की विशेषता प्रकट हो, उन्हें 'क्रियाविशेषण' कहते है।
दूसरे शब्दो में- जो शब्द क्रिया की विशेषता बतलाते है, उन्हें क्रिया विशेषण कहा जाता है।
क्रिया-विशेषण अव्यय परिभाषा और भेद |
जैसे- राम धीरे-धीरे टहलता है; राम वहाँ टहलता है; राम अभी टहलता है।
इन वाक्यों में 'धीरे-धीरे', 'वहाँ' और 'अभी' राम के 'टहलने' (क्रिया) की विशेषता बतलाते हैं। ये क्रियाविशेषण अविकारी विशेषण भी कहलाते हैं। इसके अतिरिक्त, क्रियाविशेषण दूसरे क्रियाविशेषण की भी विशेषता बताता हैं।
क्रिया विशेषण के प्रकार
- प्रयोग के अनुसार क्रियाविशेषण के भेद
- रूप के अनुसार क्रिया विशेषण के भेद
- अर्थ के अनुसार क्रिया विशेषण के भेद
प्रयोग के अनुसार क्रियाविशेषण के भेद
- साधारण क्रियाविशेषण अव्यय
- संयोजक क्रियाविशेषण अव्यय
- अनुबद्ध क्रियाविशेषण अव्यय
रूप के अनुसार क्रिया विशेषण के भेद
- मूल क्रियाविशेषण
- यौगिक क्रियाविशेषण
- स्थानीय क्रियाविशेषण
अर्थ के अनुसार क्रिया विशेषण के भेद
- कालवाचक क्रियाविशेषण अव्यय
- स्थानवाचक क्रियाविशेषण अव्यय
- परिमाणवाचक क्रियाविशेषण अव्यय
- रीतिवाचक क्रियाविशेषण अव्यय
संबंधबोधक अव्यय
संबंधबोधक अव्यय की परिभाषा
जिन अव्यय शब्दों के कारण संज्ञा के बाद आने पर दूसरे शब्दों से उसका संबंध बताते हैं उन शब्दों को संबंधबोधक शब्द कहते हैं। ये शब्द संज्ञा से पहले भी आ जाते हैं।
संबंधबोधक अव्यय परिभाषा और भेद |
जहाँ पर बाद , भर , के ऊपर , की और , कारण , ऊपर , नीचे , बाहर , भीतर , बिना , सहित , पीछे , से पहले , से लेकर , तक , के अनुसार , की खातिर , के लिए आते हैं वहाँ पर संबंधबोधक अव्यय होता है।
जैसे -
- मैं विद्यालय तक गया।
- स्कूल के समीप मैदान है।
- धन के बिना व्यवसाय चलाना कठिन है।
प्रयोग की पुष्टि से संबंधबोधक अव्यय के भेद
- सविभक्तिक
- निर्विभक्तिक
- उभय विभक्ति
सविभक्तिक: जो अव्यय शब्द विभक्ति के साथ संज्ञा या सर्वनाम के बाद लगते हैं उन्हें सविभक्तिक कहते हैं। जहाँ पर आगे , पीछे , समीप , दूर , ओर , पहले आते हैं वहाँ पर सविभक्तिक होता है।
जैसे -
- घर के आगे स्कूल है।
- उत्तर की ओर पर्वत हैं।
- लक्ष्मण ने पहले किसी से युद्ध नहीं किया था।
निर्विभक्तिक: जो शब्द विभक्ति के बिना संज्ञा के बाद प्रयोग होते हैं उन्हें निर्विभक्तिक कहते हैं। जहाँ पर भर , तक , समेत , पर्यन्त आते हैं वहाँ पर निर्विभक्तिक होता है।
जैसे -
- वह रात तक लौट आया।
- वह जीवन पर्यन्त ब्रह्मचारी रहा।
- वह बाल बच्चों समेत यहाँ आया।
उभय विभक्ति: जो अव्यय शब्द विभक्ति रहित और विभक्ति सहित दोनों प्रकार से आते हैं उन्हें उभय विभक्ति कहते हैं। जहाँ पर द्वारा , रहित , बिना , अनुसार आते हैं वहाँ पर उभय विभक्ति होता है।
जैसे -
- पत्रों के द्वारा संदेश भेजे जाते हैं।
- रीति के अनुसार काम होना है।
समुच्चयबोधक अव्यय
समुच्चयबोधक अव्यय की परिभाषा
जो शब्द दो शब्दों , वाक्यों और वाक्यांशों को जोड़ते हैं उन्हें समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं। इन्हें योजक भी कहा जाता है। ये शब्द दो वाक्यों को परस्पर जोड़ते हैं।
जहाँ पर और, तथा, लेकिन, मगर, व, किन्तु, परन्तु, इसलिए, इस कारण, अत:, क्योंकि, ताकि, या, अथवा, चाहे, यदि, कि, मानो, आदि, यानि, तथापि आते हैं, वहाँ पर समुच्चयबोधक अव्यय होता है।
समुच्चयबोधक अव्यय परिभाषा और भेद |
जैसे:
- सूरज निकला और पक्षी बोलने लगे।
- छुट्टी हुई और बच्चे भागने लगे।
- किरन और मधु पढने चली गईं।
- मंजुला पढने में तो तेज है परन्तु शरीर से कमजोर है।
समुच्चयबोधक अव्यय के भेद
- समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय
- व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय
समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय: जिन शब्दों से समान अधिकार के अंशों के जुड़ने का पता चलता है उन्हें समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं।
जहाँ पर किन्तु , और , या , अथवा , तथा , परन्तु , व , लेकिन , इसलिए , अत: , एवं आते है वहाँ पर समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय होता है।
जैसे:
- कविता और गीता एक कक्षा में पढ़ते हैं।
- मैं और मेरी पुत्री एवं मेरे साथी सभी साथ थे।
व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय: जिन अव्यय शब्दों में एक शब्द को मुख्य माना जाता है और एक को गौण। गौण वाक्य मुख्य वाक्य को एक या अधिक उपवाक्यों को जोड़ने का काम करता है। जहाँ पर चूँकि , इसलिए , यद्यपि , तथापि , कि , मानो , क्योंकि , यहाँ , तक कि , जिससे कि , ताकि , यदि , तो , यानि आते हैं वहाँ पर व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय होता है।
जैसे:
- मोहन बीमार है इसलिए वह आज नहीं आएगा।
- यदि तुम अपनी भलाई चाहते हो तो यहाँ से चले जाओ।
- मैंने दिन में ही अपना काम पूरा कर लिया ताकि मैं शाम को जागरण में जा सकूं।
विस्मयादिबोधक अव्यय
विस्मयादिबोधक अव्यय की परिभाषा
जिन अव्यय शब्दों से हर्ष , शोक , विस्मय , ग्लानी , लज्जा , घर्णा , दुःख , आश्चर्य आदि के भाव का पता चलता है उन्हें विस्मयादिबोधक अव्यय कहते हैं। इनका संबंध किसी पद से नहीं होता है। इसे घोतक भी कहा जाता है। विस्मयादिबोधक अव्यय में (!) चिन्ह लगाया जाता है।
विस्मयादिबोधक अव्यय |
जैसे -
- वाह! क्या बात है।
- हाय! वह चल बसा।
- आह! क्या स्वाद है।
- अरे! तुम यहाँ कैसे।
विस्मयादिबोधक अव्यय के भेद
- हर्षबोधक
- शोकबोधक
- विस्मयादिबोधक
- तिरस्कारबोधक
- स्वीकृतिबोधक
- संबोधनबोधक
- आशिर्वादबोधक
हर्षबोधक: जहाँ पर अहा! , धन्य! , वाह-वाह! , ओह! , वाह! , शाबाश! आते हैं वहाँ पर हर्षबोधक होता है।
शोकबोधक: जहाँ पर आह! , हाय! , हाय-हाय! , हा, त्राहि-त्राहि! , बाप रे! आते हैं वहाँ पर शोकबोधक आता है।
विस्मयादिबोधक: जहाँ पर हैं! , ऐं! , ओहो! , अरे वाह! आते हैं वहाँ पर विस्मयादिबोधक होता है।
तिरस्कारबोधक: जहाँ पर छि:! , हट! , धिक्! , धत! , छि:छि:! , चुप! आते हैं वहाँ पर तिरस्कारबोधक होता है।
स्वीकृतिबोधक: जहाँ पर हाँ-हाँ! , अच्छा! , ठीक! , जी हाँ! , बहुत अच्छा! आते हैं वहाँ पर स्वीकृतिबोधक होता है।
संबोधनबोधक: जहाँ पर रे! , री! , अरे! , अरी! , ओ! , अजी! , हैलो! आते हैं वहाँ पर संबोधनबोधक होता है।
आशीर्वादबोधक: जहाँ पर दीर्घायु हो! , जीते रहो! आते हैं वहाँ पर आशिर्वादबोधक होता है।
निपात अव्यय
निपात अव्यय की परिभाषा
जो वाक्य में नवीनता या चमत्कार उत्पन्न करते हैं उन्हें निपात अव्यय कहते हैं। जो अव्यय शब्द किसी शब्द या पद के पीछे लगकर उसके अर्थ में विशेष बल लाते हैं उन्हें निपात अव्यय कहते हैं। इसे अवधारक शब्द भी कहते हैं। जहाँ पर ही , भी , तो , तक ,मात्र , भर , मत , सा , जी , केवल आते हैं वहाँ पर निपात अव्यय होता है।
निपात अव्यय परिभाषा और भेद |
जैसे-
- प्रशांत को ही करना होगा यह काम।
- सुहाना भी जाएगी।
- वह तुमसे बोली तक नहीं।
- पढाई मात्र से ही सब कुछ नहीं मिल जाता।
निपात के भेद
- उपमार्थक निपात: यथा- इव, न, चित्, नुः
- कर्मोपसंग्रहार्थक निपात: यथा- न, आ, वा, ह;
- पदपूरणार्थक निपात: यथा- नूनम्, खलु, हि, अथ।
निपात के प्रकार
निपात के नौ प्रकार या वर्ग हैं-
स्वीकार्य निपात- जैसे : हाँ, जी, जी हाँ।
नकरार्थक निपात- जैसे : नहीं, जी नहीं।
निषेधात्मक निपात- जैसे : मत।
पश्रबोधक- जैसे : क्या ? न।
विस्मयादिबोधक निपात- जैसे : क्या, काश, काश कि।
बलदायक या सीमाबोधक निपात- जैसे : तो, ही, तक, पर सिर्फ, केवल।
तुलनबोधक निपात- जैसे : सा।
अवधारणबोधक निपात- जैसे : ठीक, लगभग, करीब, तकरीबन।
आदरबोधक निपात- जैसे : जी।
तो दोस्तों आपको मेने अव्यय के बारे में संपूर्ण जानकारी दी है जिसे आप बहुत अच्छे से समझ पाए होंगे ।और हिंदी व्याकरण से releted articale पढ़ने के लिए हमारे ब्लॉगर को जरूर पढ़े ।
धन्यवाद👍
Nic nmbt
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